अतरंजीखेड़ा स्थल की वर्तमान फ़ोटो

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व हुआ था ।
अतरंजी खेड़ा का इतिहास 1500 से 2000 ईसा पूर्व का है ।
फिर ये बौद्ध स्थल कैसे हो गया ।
अतरंजी खेड़ा एक वृहद नगरीय सभ्यता थी जो काफी सम्रद्ध थी ।।
मोहमद गौरी के समय यहा राजा बेन का शाशन था जिन्होंने मोहमद गौरी को पराजित किया जिसमें उसका एक सेनापति या कहे कि धर्मगुरु मारा गया।
आज भी उसकी मजार वहां स्तिथ है बाद में इस नगर को उजाड़ दिया गया है ।। वहा पर आज भी टीलों पर शिवलिंग के अवशेष मौजूद है । फिर इस पुरातन सभ्यता और ऐतिहासिक स्थल की पहचान क्यों बदली जा रही है किस लिए इसको बौद्ध धर्म स्थल घोषित किया जा रहा है !

अतरंजी खेड़ा उत्तर प्रदेश के एटा ज़िलांतर्गत गंगा की सहायक काली नदी के तट पर स्थित एक प्रागैतिहासिक स्थल है। इस स्थल की खोज 1961-1962 ई. में एलेक्जेण्डर कनिंघम ने की थी। कनिंघम ने चीनी यात्री युवानच्वांग द्वारा उल्लिखित पि-लो-शा-न नामक स्थल का अतरंजी खेड़ा से समीकरण किया है।

इतिहास
अबुल फ़जल ने ‘आइने अकबरी’ में अतरंजी का उल्लेख कन्नौज सरकार के एक महल के रूप में किया है। यहाँ पर 1962 ई. में परिक्षणात्मक खुदाई की गयी। 1964 ई. से सात वर्षों तक लगातार उत्खनन से यहाँ एक प्रागैतिहासिक सांस्कृतिक स्थल खोज निकाला गया। प्रारम्भिक उत्खननों का निर्देशन मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के प्रोफेसर नुरुल हसन और आर. सी. गौड़ ने किया।

कहा जाता है कि राजा बेन ने मुहम्मद ग़ोरी को उसके कन्नौज-आक्रमण के समय परास्त किया था किंतु अंत में बदला लेकर ग़ोरी ने राजा बेन को हराया और उसके नगर को नष्ट कर दिया। एक ढूँह के अन्दर से हजरत हसन का मक़बरा निकला था- जो इस लड़ाई में मारा गया था।
कुछ लोगों का कहना है कि अंतरंजी खेड़ा वही प्राचीन स्थान है जिसका वर्णन चीनी यात्री युवानच्वांग ने पिलोशना या विलासना नाम से किया है किंतु यह धारणा ग़लत सिद्ध हो चुकी है। यह दूसरा स्थान बिलसड़ नामक प्राचीन नगर था जो एटा से 30 मील दूर है। किन्तु फिर भी अंतरंजी खेड़े के पूर्व-मुसलमान काल का नगर होने में कोई संदेह नहीं है क्योंकि यहां के विशाल खंडहरों के उत्खनन में, जो एक विस्तृत टीले के रूप में हैं (टीला 3960 फुट लम्बा, 1500 फुट चौड़ा और प्राय: 65 फुट ऊंचा है) शुंग, कुषाण और गुप्तकालीन मिट्टी की मूर्तियां, सिक्के, ठप्पे, ईंटों के टुकड़े आदि बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं।
खंडहर के एक सिरे पर एक शिवमंदिर के अवशेष हैं जिसमें पांच शिवलिंग हैं। इनमें एक नौ फुट ऊंचा है। टीले की रूपरेखा से जान पड़ता है कि इसके स्थान पर पहले एक विशाल नगर बसा हुआ था।
यहाँ पर दो हज़ार वर्ष ई. पूर्व. से लेकर अकबर के शासनकाल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों के आधार पर यहाँ की संस्कृतियों को चार स्तरों में बाँटा जा सकता है।